लक्ष्य से भटकती कृषि विभाग की फसल प्रर्दशन योजना

कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों के खेतों पर कृषि विभाग द्वारा फसल प्रदर्शन आयोजित किये जाते रहे हैं। ग्रामीण कृषि विस्तारक अधिकारी के मार्गदर्शन में किसान खेत में कृषि विभाग द्वारा दिये आदानों यथा उन्नत बीज, उर्वरक, पौधपोषक सूक्ष्म मात्रिक तत्व, बीजोपचार की दवा, कीट व्याधि नियंत्रण की दवा आदि का प्रयोग कर अच्छी पैदावार लेने के लिए प्रयास करता है और यदि किसान की महनत रंग लाई, फसल की बढ़वार अच्छी हुई तो आस-पास के गांव के किसान भी फसल प्रदर्शन देखने आते हैं। कृषि विभाग ऐसे खेतों में प्रचार-प्रसार के लिए अपना बोर्ड भी लगाता है तथा किसान दिवस आयोजित कर सभी आगंतुक किसान भाईयों को भी पारंपरिक फसल उत्पादन की तुलना में उन्नत तकनीक अपनाने के फायदे के बारे में भी बताता है अच्छी पैदावार पाने के लिए ऐसे प्रदर्शनों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है किसानों के खेतों तक संपूर्ण कृषि आदान सामग्री को एकसाथ पहुंचाना ताकि फसल उत्पादन के लिए लगने वाले संसाधन उच्च गुणवत्तायुक्त हों एवं इनमें किसी भी आदान की लगने वाली मात्रा की कोई कमी न हो।
पिछले वर्षों तक फसल प्रदर्शन के लिए अपनाई गई इस केवल उन्नत बीज देने तक सीमित कर लिया है, फसल उत्पादन के बाकी संसाधन जुटाने की जिम्मेदारी किसानों पर डाल दी है वह  स्वयं इसे बाजर से खरीदे व ऐसी खरीद पर शासकीय सहायता पाने के लिए ग्रामीण कृषि विस्तारक अधिकारी के माध्यम से आवेदन दे तब उसे अनुदान सहायता विभाग द्वारा दी जावेगी। अब इस पूरी प्रक्रिया में 'फसल प्रदर्शन प्लाटÓ डालने का मूल मंतव्य ही विपरीत रूप से प्रभावित हो रहा है। ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी विचलित है क्योंकि किसान यदि अपनी जेब से पूरे संसाधन नहीं जुटाए तो इनकी समय पर कमी से अच्छी फसल पाने का पूरा आयोजन ही चौपट हो जाता है। वस्तुत: ऐसे प्रदर्शन आयोजित करने का उद्देश्य किसान को पूरे संसाधन देकर अच्छी पैदावार पाने के लिए प्रोत्साहित करना है परंतु जब किसान को पहले अपनी जेब से धनराशि खर्च करना पड़े और नई तकनीक अपनाने का खतरा मोल लेगा? कृषि प्रसार की जो सर्वमान्य तकनीक वर्ष १९६४ से अपनाई जा रही हो इसमें एकाएक इस प्रकार का परिवर्तन जिसमें किसान से यह अपेक्षा की जावे कि पहले वो गांठ का पैसा खर्च करे फिर इसकी प्रतिपूर्ति के लिए सरकारी दफतर के चक्कर लगाये, उचित कार्यप्रणाली नहीं है।
कृषि विभाग की ओर से ऐसे फसल प्रदर्शनों के लिए फसलों की नवीनतम किस्मों के आधार बीज दिये जाते रहे हैं ताकि इनसे भरपूर उत्पादन मिले व नवीनतम किस्मों के बीजों का गांव में तेजी से प्रचार-प्रसार हो लेकिन इससे उलट वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि इन फसल प्रदर्शनों में वर्षों से प्रचलित बीजों की किस्में जिन की दूसरे दर्जे की प्रामाणिकता है या तो वे दिये जा रहे हैं अथवा कृषि विभाग के शासकीय प्रक्षेत्रों के बिना बिके बीज इन प्रदर्शनों के लिए दिये जा रहे हैं। ऐसे निम्न स्तरीय बीजों और उनकी प्रचिलित किस्मों पर आधारित प्रदर्शन देखने न तो किसान भाई जुटते हैं और न ही गांठ का पैसा लगा कर प्रदर्शन प्लाट डालने में उनकी दिलचस्पी दिखाई देती है विभागीय लक्ष्यपूर्ति में जुटा ग्रामीण कृषि विस्तारक अधिकारी हैरान-परेशान होकर भटकता रह जाता है, किसानों का भरोसा तो खोता ही है साथ ही ऐसी स्थिति में अपने उच्चाधिकारियों की प्रताडऩा भी भोगना पड़ती है। कृषि पैदावार बढ़ाने के लिए केन्द्रीय शासन द्वारा दी जा रही धनराशि भी उद्देश्य पूर्ति के अभाव में बेकार जा रही है। यही हाल विभाग द्वारा किसानों के मध्य वितरित किये जा रहे मिनी किट्स का भी है। इनका उद्देश्य न तो पारंपरिक फसलों की तुलना में प्रायोगिक रूप से नई फसलें अपनाने के लिए प्रेरित करना है और नई किस्मों को शीघ्रातिशीघ्र किसानों तक पहुंचाना है। लेकिन इसमें भी पुराने बीजों की ही भरमार है।
यदि इन परिस्थितियों पर गंभीरतापूर्वक विचार करें तो यही निष्कर्ष निकलता है कि कृषि विभाग केवल कागजी लक्ष्यपूर्ति के लिए कार्यरत है। इसके कर्णधारों को प्रचार-प्रसार तकनीक का कृषि विज्ञान का कोई अनुभव या ज्ञान ही नहीं है। विशुद्ध प्रशासनिक आधार पर कृषि विभाग का संचालन किया जा रहा है। इसमें परिवर्तन तभी संभव है जब कि विभाग का मुखिया स्वयं कृषि विशेषज्ञ हो।